गांधी जी की आधी बात को नक़ल करके देश को गुमराह ना किया जाए : उसामा क़ासमी
 


कानपुर। हाल ही में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का शहीद दिवस पूरे देश में मनाया गया । समस्त राजनीतिक पार्टियों, संवैधानिक संस्थाओं , सरकारों विशेषकर केंद्रीय सरकार के द्वारा हर जगह उनके व्यक्तित्व और विचारों को देश के आवाम चाहे वह किसी भी धर्म के मानने वाले हों के लिए आदर्श बताया गया। इन विचारों को व्यक्त करते हुए जमीयत उलमा उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष मौलाना मुहम्मद मतीनुल हक़ उसामा क़ासमी क़ाज़ी ए शहर कानपुर ने कहा कि कल हमारे देश के बजट सत्र का शुभारंभ महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने तमाम संसद सदस्यों को खिताब करते हुए किया। अपने खिताब(भाषण) में राष्ट्रपति महोदय ने कहा कि भारत ने हमेशा सर्व पंथ संभव पर विश्वास किया है । लेकिन विभाजन के समय सबसे ज्यादा प्रहार भारत और भारत वासियों के इसी विश्वास पर किया गया। विभाजन के बाद बने माहौल में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि-" पाकिस्तान के हिंदू और सिख जो वहां नहीं रहना चाहते वह भारत आ सकते हैं, उन्हें सम्मानजनक जीवन मुहैया कराना भारत सरकार का कर्तव्य है।" इस बात पर सहमति व्यक्त करते हुए मौजूद तमाम सदस्यों ने खूब तालियां बजाकर समर्थन किया। प्रदेश अध्यक्ष मौलाना उसामा कासमी ने कहा कि हमारे राष्ट्र के निर्माताओं की इच्छाओं को पूरा करना सरकार के साथ समस्त देशवासियों की भी जिम्मेदारी है लेकिन गांधीजी ने हिंदू सिख के साथ राष्ट्रवादी मुसलमानों के सिलसिले में भी यही बात कही और अपनी किताब में लिखी है तो गांधीजी की आधी बात लेना और आधी बात छोड़ देना यही संविधान के खिलाफ है। मौलाना ने कहा कि गांधीजी की आधी बात को नक़ल करके देश को गुमराह ना किया जाए। संसद जैसे पवित्रतम स्थान पर देश के सबसे बड़े संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति की तरफ से गांधीजी की आधी बात कहना और आधी बात छोड़ देना शोभा नहीं देता। उन्हें चाहिए  कि गांधी जी की पूरी बात लें और इसी के मुताबिक नागरिकता संशोधन कानून में संशोधन कर दें, जो संविधान की आधारभूत धाराओं के अनुसार और गांधी जी के आदर्शों पर आधारित हो, सारा झगड़ा ही खत्म हो जाएगा। दूसरी अवस्था में गांधी जी के आदर्शों और देश के संविधान की भावना के खिलाफ कोई कानून कैसे काबिले कबूल हो सकता है मौलाना कासमी ने कहा कि महात्मा गांधी से सबसे ज्यादा मोहब्बत का दावा करने वाली मौजूदा सरकार महात्मा गांधी की एक बात को तो खूब बढ़ चढ़कर मानती है, लेकिन उन्हीं महात्मा गांधी के द्वारा ही कही गई दूसरी बात जिसमें मुसलमानों का वर्णन है , उसको नहीं मानती यह मौजूदा सरकार के नुमाइंदों की संकीर्ण मानसिकता को ज़ाहिर करता है। पिछले साल के अंतिम महीने में हमारे देश के पवित्रतम संवैधानिक भवन "संसद" में सीएए जैसा धार्मिक भेदभाव पर आधारित कानून पारित किया गया। इसमें धर्म के आधार पर हमारे देश के आवाम में फर्क तो किया ही गया ,  साथ ही साथ देश के आवाम में भारतीय मुसलमानों के विरुद्ध नफरत का जहर घोलने की कोशिश भी की गई है। मौजूदा हुक्मरां अगर वाकई महात्मा गांधी से सच्ची मोहब्बत रखते तो वह कभी भेदभाव पर आधारित कानून नहीं बनाते । मौलाना उसामा ने कहा कि सरकार अगर पूरी ईमानदारी के साथ महात्मा गांधी ही की बातों को मान ले और धार्मिक भेदभाव को हटा ले और हर मज्लूम व परेशानहाल चाहे वह किसी भी धर्म का मानने वाला हो , किसी भी देश का रहने वाला हो,  सच्चे दिल से ईमानदारी के साथ मजदूरों का साथ देते हुए सीएए कानून वापस ले ले या इसमें संशोधन कर ले तो सीएए को लेकर चल रही हमारी लड़ाई सरकार से खत्म हो जाएगी। हमें देश की सरकार से कोई व्यक्तिगत शत्रुता नहीं बल्कि वैचारिक मतभेद हैं। लेकिन इस मतभेद को सरकार के नुमाइंदों के द्वारा देश विरोधी करार देना देश के लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए बेहद अफसोस नाक है। पूरी दुनिया के मौजूदा हालात के मद्देनजर धर्म और जा़त के नाम पर इंसानों में फर्क करने के बजाय सरकार को देश के व्यवसायिक, आर्थिक समेत अन्य क्षेत्रों में काम करके अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन करते हुए हर तरह से देश को मजबूत बनाकर आगे बढ़ना चाहिए।