ड्रेस की गुडवत्ता पे फर्मो का डाका

  
     


 


कानपुर । 1 अप्रैल 2010 को “शिक्षा का अधिकार कानून 2009” पूरे देश में लागू हुआ, अब यह एक अधिकार है जिसके तहत राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना है कि उनके राज्य में 6 से 14 साल के सभी बच्चों को नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा के साथ-साथ अन्य जरूरी सुविधाएं उपलब्ध हों और इसके लिए उनसे किसी भी तरह की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष शुल्क नहीं लिया जा सके । इसी कड़ी में 
केन्द्र सरकार ने इस साल यूनिफार्म के मद में 50 फीसदी का इजाफा किया है। अब इसके लिए 200 रुपये की जगह 300 रुपये प्रति जोड़ा दिया गया। 



बीते सात सालों में महंगाई ने भले ही नए रिकार्ड बनाए हो लेकिन सरकारी स्कूली बच्चों की यूनिफार्म इससे अछूती ही रही। वर्ष 2011 से सरकारी व सहायताप्राप्त स्कूलों में यूनिफार्म के लिए 200 रुपये प्रति जोड़ा ही दिया जाता रहा है। योजना में हर बच्चे को दो जोड़ा यूनिफार्म दी जा रही है।
ये यूनिफार्म विद्यालय प्रबंध समिति बनवाती है। इसके लिए कपड़ा खरीद कर नाप की यूनिफार्म सिलवाने का नियम है । परन्तु अब यहीं से शुरू होता है शिक्षा माफियाओ का खेल जैसा कि बड़े नेता भी मान चुके है कि सरकार द्वारा पात्र लोगों को एक ₹ भेजा जाता है तो उस का 10 पैसा ही उस तक पहुँच पाता है 90 पैसा सरकारी सिस्टम की भेंट चढ़ जाता है ।


 


यूनिफार्म की गुडवत्ता में आ रही लगातार शिकायतों को देखते हुए गुणवत्ता में सुधार हेतु टैक्सटाइल कमेटी  (वस्त्र मंत्रालय भारत सरकार मुंबई )द्वारा मानक निर्धारित करवाकर,,(67%,+33% पॉलिस्टर + कॉटन से मिश्रित कपड़ा बेहतर मटेरियल, बेहतर सिलाई के साथ वितरण के आदेश सुनिश्चित कराएं । जनपद स्तरीय समिति का गठन करके कपड़े की जांच करवा कर सप्लाई सुनिश्चित कराई जाए


बेसिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय से फर्म पास होने में हुआ खेल विभागीय लोगों ने साठगांठ करके करीबियों एवं विभागीय कमर्चारियों एव टीचरों के सगे सम्बन्धियों की फर्म कार्यालय में रजिस्टर करवाई
सूत्रों के अनुसार जब कार्यालय से फर्मों की लिस्ट जारी हुई।तब बाजार में मानक अनुरूप ड्रेस का कपड़ा नहीं था मिल द्वारा कपड़े की सप्लाई 5 से 10 अगस्त ,1 महीने के बाद शुरू हुई।।
 दिनांक 1 जुलाई 2019 से प्रारंभ होकर 15 जुलाई 2019 तक ड्रेस वितरण पूर्ण होना था
70% स्कूलों में ड्रेस का पूर्ण वितरण सुदूरवर्ती तथा गांव में अभी तक पूर्ण वितरण नहीं हुआ सहायता प्राप्त स्कूलों में राशि न मिलने से बच्चे पुरानी फटी ड्रेस पहनने को मजबूर हैं !
सरकार द्वारा गुडवत्ता के उठाये गए कदमो को विभाग के कुछ कर्मचारियों द्वारा रोक दिया गया है । उन की शह पे ड्रेस वितरण करने वाली फर्मों ने रेडीमेड घटिया सिलाई वाली यूनिफॉर्म वितरित की और फर्जी टेलर के बिल लगाकर पेमेंट पास करा लिया
जब कि सरकार सरकार द्वारा बनाये गए नियम के अनुसार यूनिफॉर्म सप्लाई की सूचना प्राप्त होने पर तीन दिवस के भीतर किसी अधिकारी द्वारा गुणवत्ता निरीक्षण किया जाना था जो कागज़ों पे ही सिमट गया
सुविधा शुल्क के चलते कुछ विभागीय कर्मचारियों ने  बिना किसी गुणवत्ता की जांच हुए बच्चों को पुरानी व घटिया ड्रेस वितरित की गई और सांठगांठ कर रजिस्टर को मेंटेन कर दिया गया।
 जब इस सम्बंध में हमारे सवांददाता शहर के जिला अधिकारी से मिले तो उन्होंने फ़र्ज़ी लाइसेंस प्रकरण की तरह बी एस ए के पाले में गेंद डालते हुए उन से सम्पर्क करने को कहा ।