ग़ल्ला मण्डी सरैयां जाजमऊ में भव्य जलसा सीरतुन्नबी का आयोजन

मायूसी और टकराव की नीतियों से ऊपर उठकर विश्वास का माहौल बनाया जाये :- मुफ्ती हुजैफा क़ासमी
कानपुर :- जमीअत उलमा शहर व मज्लिस तहफ्फुज़ खत्मे नुबुव्वत कानपुर के द्वारा मनाये जा रहे रहमते आलम महीना के तहत ग़ल्ला मण्डी सरैयां जाजमऊ में रहमते आलम महीने के संयोजक मौलाना मुहम्मद मतीनुल हक़ उसामा क़ासमी क़ाज़ी ए शहर कानपुर की अध्यक्षता में जलसा सीरतुन्नबी का आयोजन हुआ। जलसे से खिताब करते हुए मुख्य अतिथी मौलाना सैयद मुहम्मद हुजैफा क़ासमी नाज़िमे तंज़ीम जमीअत उलमा महाराष्ट्र ने मौजूदा हालात के मद्देनज़र कहा कि मायूसी और टकराव की नीतियों से ऊपर उठकर पूरे हौसले के साथ देष बंधुओं को दीने इस्लाम की सच्ची और पाकीज़ा तालीमात से वाक़िफ कराना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। हमारे बुजुर्ग और जमीअत के ज़िम्मेदारों ने मिलकर के कमज़ोर वर्ग की समस्याओं को सामने रखकर कोई फैसला किया है। हम मुसलमानों को टकराव की पालीसी से बचते हुए उद्देष्यपूर्ण और निर्माण कार्यां पर तवज्जो देते नई नस्ल की आला तालीम की फिक्र करनी होगी। फालतू समय खराब करने से बचना हमारे लिये बेहद ज़रूरी है। 9 नवम्बर को सुप्रीम कोर्ट की जानिब से आने वाले फैसले पर बात करते हुए मुफ्ती मुहम्मद हज़ैफा ने कहा है कि इस फैसले में बहुत सी चीज़ें हमारे लिये बेहद क़ीमती हैं। बाबरी मस्जिद के अन्दर 1949 में मूर्ति रखने से लेकर 6 दिसम्बर 1992 को मस्जिद की शहादत तक हमारे खिलाफ सबसे बड़ा और घिनावना आरोप यह था कि बाबरी मस्जिद मंदिर को तोड़कर नाजायज़ तरीक़े से बनाई गई है, सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले ने इस सिलसिले में स्पष्ट निर्णय करते हुये यह साफ किया है कि बाबरी मस्जिद किसी मंदिर को तोड़कर नाजायज़ तरीक़े से नहीं बनाई गई। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने भारतीय मुसलमानों पर लगे इस इल्ज़ाम को खत्म कर दिया है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ कर दिया है 1949 में मस्जिद में मुर्ति रखना और 1992 में मस्जिद का शहीद किया जाना यह दोनो अमल बेहद खराबा और मुजरिमाना अमल थे। इतनी सारी हक़ीक़तों को तस्लीम कर लेने के बाद मस्जिद की यह पूरी जगह रामलला के हवाले कर देना यही वह हिस्सा जिसको देेश बड़ा न्यायप्रिय वर्ग गैर मुंसिफाना कदम क़रार दे रहा है और जिसके खिलाफ एक बड़े वर्ग में बेचैनी पाई जा रही है। हमारे बड़ों की हिदायतों के अनुसार देश की शांति व्यवस्था को बनाये रखना और इस कड़वे घूंट को पीकर भी सब्र का दामन ना छोड़ना और धैर्य के साथ शांतिप्रिय नागरिक का किरदार अदा करना यह भारतीय मुसलमानों का ऐतिहासिक कारनामा है जिसको दुनिया कभी फरामोश नहीं कर सकती। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने हमको सुबूतों के आधार पर मिलने वाले फैसले से मिलने वाली मायूसी के बावजूद हमारे बड़े इस फैसले के विरूद्ध पुर्नविचार याचिका में जाने को भारतीय मुसलमानों के पक्ष में नुक्सानदेह समझते हैं। इसलिये कि न्यायमूर्ति रंजन गोगोई साहब अब उस जगह पर मौजूद नहीं हैं, और यह फैसला पांचों जजों का एकमत होकर सहमति से लिया गया फैसला है और पुर्नविचार याचिका से इसमें किसी किस्म के बदलाव की उम्मीद और उज्जवल संभावनाएं नज़र नहीं आतीं। साथ ही देशबंधुओं ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर किसी तरह का सार्वजनिक जश्न रैली आदि निकालने से एहतियात बरती थी। यही वजह है कि पूरे देेेश कहीं से भी शांति व्यवस्था में खलल पैदा होने की खबर नहीं आयी और साम्प्रदायिक शक्तियां मुसलमानों के विरुद्ध माहौल बिगाड़ने में कामयाब नहीं हो सकीं। लेकिन अब पुर्नविचार याचिका दाखिल करने की बात सामने आने के बाद भड़काऊ बयान और इस फैसले को चैलेंज करने वालों के विरूद्ध माहौल गर्म करने का सिलसिला शुरू हो गया है। लिहाज़ा देश का एक बहुत बड़ा वर्ग और हमारे बड़े इस पुर्नविचार याचिका दाखिल करने को मिल्लत के सामूहिक हित में नहीं समझते। कहीं ऐसा ना हो कि 50 पैसे की चाये के चक्कर में 2 रूपये का गिलास भी खोना पड़ जाये।
काज़ी ए शहर मौलाना मुहम्मद मतीनुल हक़ उसामा क़ासमी ने फरमाया कि अल्लाह ने नबी को क़यामत तक आने वाले इंसानों के लिए नबी बना कर भेजा। नबी करीम स0अ0व0 पर अल्लाह ने सबसे पहली जो आयत नाज़िल फरमायी हैं वह षिक्षा और अल्लाह से निकटता बनाने से संबधित है। कुरआन व हदीस में शिक्षा का महत्व बार-बार बताया गया है। यहां तक कि पहली ''वही''(अल्लाह का सन्देष जो फरिष्तों द्वारा नबी के पास आता था।) का पहला शब्द '' इक़रा'' भी इसी तरफ रहनुमाई करता है। मगर आज हम कुरआन व हदीस की इन षिक्षाओं और संदेषों से व्यवहारिक तौर पर बहुत दूर हैं। हालांकि यह षिक्षा ही दुनिया और आखिरत(परलोक) में उत्कृष्ट स्थान दिलाएगी। मौलाना ने उपस्थित लोगों से वादा लिया कि अपने बच्चो को समसत षिक्षाओं के साथ ही आवष्यकतानुसार धार्मिक शिक्षा भी दिलाएंगे। खुद भी दीनी षिक्षा सीखेंगे और अपने घर की महिलाओं को भी साक्षर बनायेंगे। जलसे में मौलाना उसामा के अलावा मौलाना खलील अहमद मज़ाहिरी ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए। इस अवसर पर मौलाना शर्फे आलम साक़िबी , ़क़ारी हुजैफा महमूदी, क़ारी सग़ीर, मौलाना कौसर जामई, मुफ्ती इज़हार मुकर्रम क़ासम, क़ारी अब्दुल मुईद चौधरी, क़ारी अब्दुल कुद्दूस , हाफिज़ रज़ा, मौलाना अयाज़ साक़िबी के अलावा बड़ी संख्या में लोगों ने शिरकत की