कानपुर । वीएसएसडी कॉलेज के विधि विभाग में बौद्धिक संपदा अधिकार की अवधारणा प्रस्तुत की गई! मुद्दे व चुनौती विषय पर दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर शैवाल की बौद्धिक संपदा अधिकार मानव मस्तिष्क की उपज है दुनिया के कई देश अपने-अपने कानून बनाकर इन्हें सुरक्षित करते चले आ रहे हैं सन 1995 विश्व व्यापार संगठन बना बौद्धिक संपदा अधिकार के बारे में लोगों के बीच जागरूकता की कई सन 1995 में विश्व व्यापार संगठन बना बौद्धिक संपदा अधिकार के बारे में लोगों के बीच अब्बा महत्त्व बढ़ गया नए-नए तरीके सामने आ रहे हैं बुद्धि की शक्ति से हम कुछ भी बेहतर करने में सक्षम है संप्रदा की उपयोगिता का विश्व को फायदा मिल रहा है ज्ञान अर्थव्यवस्था के प्रमुख चालक के रूप में उभरे हैं वर्तमान परिदृश्य में बौद्धिक संपदा अधिकार जागरूक तकनीकी नवाचार और उभरती हुई ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण है डिजिटल पर्यावरण में बौद्धिक संपदा अधिकार के बारे में जानकारी आवश्यक है क्योंकि डिजिटल वातावरण में जब भी अधिकारों का उल्लंघन होता है उसको सिद्ध करना कठिन होता है कालेज की प्राचार्य पिया की संपत्ति की सतत परिवर्तनशील है प्राचीन समय में सिर्फ भौतिक संपत्ति को के साथ-साथ मानव मस्तिष्क से उत्पन्न कीर्ति को भी व्यक्ति की संपत्ति माना जाने लगा इसी को ध्यान में रखकर भारतीय मनीषियों द्वारा यह प्रतिपादित किया गया है किशोर सारी चीजें ले जा सकता है परंतु उसकी विद्या व बुद्धि को नहीं इस प्रकार भारतीय चिंतन के मस्ती के को स्वीकार करता है तकनीकी परिवर्तन के परिणाम स्वरूप मनुष्य के मस्तिक से नृत्य नए मस्तिक में उत्पन्न किसी कीर्ति और विचार कॉपीराइट करके धन कमाया जा सकता है तुमने व्यक्ति के द्वारा डाटा उत्पन्न करके धन कमाया जा सकता है! कार्यक्रम का संचालन भ्रमण किया! इस अवसर पर वरिष्ठ पर अध्यापक प्रोफेसर डॉ राम बक्स डॉ पीएन त्रिवेदी डॉक्टर वीके वर्मा डॉ डीके ओझा डॉक्टर आरसी धीमान आदि लोग मौजूद रहे!
वीएसएसडी कॉलेज के विधि विभाग द्वारा व्याख्यान!