भीषण ठंड से जूझते गरीबो की कौन करे सहायता,जो आता खानापूरी कर निकल जाता



मोo नदींम सिद्दीकी...............


कानपुर/भीषण गर्म के थपेड़ों की मार झेले शाहरवासियो को दिसम्बर माह की रिकार्ड तोड़ ठंड ने हड्डियों को भी थरथराने पर विवश कर दिया है । सांध्य होने से पहले ही लोग लिहाफ और कम्बलों में दुबक जाते है । अधिकाँश शहरो में तो पारा शून्य तक पहुचने के आसार हो गए है पहाड़ी क्षेत्रो में तो बर्फबारी भी शुरू हो चुकी है । ऐसे मौसम में बर्फ का मज़ा लेने वाले पर्यटको की भीड़ पहाड़ी इलाको पर उमड़ी रहती है हिमालयों पर बने हिल स्टेशनों पर इस मौसम में अद्धभुत चमक देखने को मिलती है । ऐसा लगता है जैसे ये सैलानी पैसे के दम पर यहाँ की सारी रौनक अपनी झोली में समेट लेंगे ।



परन्तु इसके विपरीत एक तबका ऐसा भी है जिसके चेहरे पर मौसम के बदलाव के साथ माथे पर परेशानी और चिन्ता की लकीरें साफ़ देखी जा सकती है । जैसे ही ठण्ड सर्द हवाओं के साथ धरती पर पाँव रखती है झोपड़पट्टियों एव फुटपाथ पर जीवनयापन करने वाले गरीब और बेसहारा लोगो की परेशानिया बढ़ जाती है । कुछ वर्ष पूर्व के मुकाबले उत्तर भारत मे दिसम्बर एवं जनवरी माह ठंड में तेजी से बदलाव हुए है इन माह में पड़ने वाली ठंड खुले टूटे फूटे छप्परों व सड़क किनारे निवास कर रहे लोगो के लिए किसी दानव से कम नही होती है । न जाने कब कौन ठंड का शिकार होकर मौत के गले लग जाए इसका भय सताता रहता है गरीबो की सर्द राते ईश्वर का जाप करते एवं तारे गिनते हुए गुजरती है हड्डियों को भी कपकपा देनी वाली ठंड से लड़ने के लिए बेसहारा लोगो के पास तन को ढकने के लिए कोई ढंग का कपडा नहीं होता है प्लेटफार्मो,पार्को,फुटपाथो और खुले आसमानों के नीचे जीवन बिताने पर मजबूर बेघर बेसहारा लोगो की भी सुध लेने वाला कोई नहीं है एक आस के सहारे ठंड से संघर्ष कर रहे लोगो को ये उम्मीद है कोई तो उनकी सहायता को आगे आएगा ।


जिले में बनाए गए रैन बसेरे भी प्रशासन की खानापूरी की कहानी बयां करते दिखाई दे जाएंगे । गरीबो को कम्बल वितरण भी चन्द लोगो मे बटकर वाहवाही के कसीदे गढ़ते साफ देखे जा सकते है । जो भी आता है खानापूरी कर अपनी चमकाकर निकल जाता है करोड़ो अरबो रूपए विकास की राह पर खर्च करने वाली केंद्र और राज्य सरकारे भी ठण्ड रूपी आपदा को लेकर कतई गंभीर नहीं दिखती है ।शीत लहर के प्राकृतिक आपदा में शामिल हो जाने के बाद भी पीड़ित व्यक्तियो को सहायता न के बराबर मिल पाती है ।जिसकी वजह ठंड से मरने वालों की संख्या में प्रति वर्ष बढोत्तरी होती रही है ।



बहरहाल अगर सरकार ने जल्द ही बेघर बेसहारा और मजबूर गरीबो को लेकर कोई ठोस कदम न उठाए तो पिछले साल के मुकाबले इस साल ठण्ड से मरने वालो की संख्या में फिर बढोत्तरी हो सकती है । जिसके ज़िम्मेदार प्रशासन के लापरवाह अधिकारी होंगे ।