दूसरा शाहीन बाग बनता जा रहा कानपुर के चमनगंज का मो.अली पार्क





  • कानपुर का सबसे घनी मुस्लिम आबादी वाला इलाका चमनगंज

  • यह चमनगंज दूसरा शाहीन बाग बन गया है

  • मुहम्मद अली पार्क में चल रहे पिछले चार दिनों से धरना प्रदर्शन

  • धरने में महिलाएं भी माइक पकड़कर बोलने से नहीं कतरा रही रख रही है अपनी बात

  • अपने इंकलाबी भाषण, नज़्म, गीत और नारों के साथ कर रहे हैं अनिश्चित कालीन धरना


कानपुर । चमनगंज कानपुर का सबसे घनी मुस्लिम आबादी वाला इलाका, जिसे तंग गलियों, आसमान छूती इमारतों, बदहाल स्वसाथ्य व्यवस्था और नॉनवेज शौकीनों की सबसे पसंदीदा जगह के रुप में जाना जाता है। जहां के लोगों के लिए आम धारणा यह थी कि उनमें जागरुकता की कमी है। हालांकि समय समय पर यहां के इक्का दुक्का लोग विभिन्न क्षेत्रों में अपना नाम रौशन कराते हुए दिख जाएंगे लेकिन फिर भी शिक्षा के प्रति जागरुकता विशेष रुप से महिला शिक्षा एवं सशक्तीकरण के प्रति जागरुकता कम मानी जाती है। लेकिन इस चमनगंज ने पिछले चार दिनों में इन सभी धारणाओं, आंकलनों को गलत साबित कर हिम्मत और साहत का जो परिचय दिया है । वह हैरान करने वाला है
देश भर में नागरिकता संशोधन कानून, एनआरसी और एनपीआर को लेकर जब आंदोलन शुरु हुआ तो सबकी निगाहें देश के सबसे बड़े एवं हिंदी भाषी राज्य उत्तर प्रदेश पर टिकी थी। क्योंकि यहां की राजनीति एवं दूसरी परिस्थितियां देश में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। जब यूपी वालों ने आंदोलन में भागीदारी करनी चाही तो प्रदेश में हिंसा भड़क उठी। परिणामस्वरुप कई लोगों की जानें गईं, कई लोग घायल हुए, कई लोगों की संपत्तियों को पुलिस द्वारा नुकसान पहुंचाया गया, सैकड़ों की संख्या में गिरफ्तारियां हुईं और यूपी पुलिस एवं राज्य सरकार पर लोगों की आवाज़ दबाने का आरोप लगा। जिसके बाद सवाल उठने लगे कि क्या अब देश का इतना बड़ा आंदोलन उत्तर प्रदेश में आकर दम तोड़ देगा? क्या नागरिकता संशोधन कानून को लेकर उत्तर प्रदेश की जनता खामोश बैठी रहेगी? क्या अब यूपी में किसी में इतना साहस नहीं बचा कि इस आंदोलन में प्रदेश को भागीदार बनाये?
कानपुर के चमनगंज स्थित मुहम्मद अली पार्क में चल रहे पिछले चार दिनों से धरना प्रदर्शन ने इन सब सवालों का मुंहतोड़ जवाब तो दिया ही दिया साथ ही साथ चमनगंज क्षेत्र के लोगों के प्रति जो आम धारणा बनी हुई थी उसे भी गलत ठहरा दिया। विशेषरुप से महिलाओं ने। जिन महिलाओं को अनपढ़ समझा जाता था । जिन्हें देश की राजनीति पर चर्चा करते हुए शायद ही कभी देखा गया हो उन महिलाओं का साहस हैरान कर देता है। केवल धरना स्थल पर पहुंचना ही यह महिलाएं अपना कर्तव्य नहीं समझती बल्कि हज़ारों की भीड़ में ये माइक पकड़कर बोलने से भी नहीं कतरातीं। आपको कोई नज़्म गाती, कोई संविधान को बचाने की गुहार करती, तो कोई अपने नारों से सरकार को ललकारती हुई दिख जाएंगी। जिन महिलाओं ने कभी सामाजिक मुद्दों पर अपनी राय नहीं रखी, जिन महिलाओं की महफिलों में यदि कभी बैठ जाओ तो खाने और कपड़े से आगे की बात नहीं सुनने को मिलती उन महिलाओं के अंदर इतना आत्मविश्वास और हिम्मत आश्चर्यचकित कर देती है।यह महिलाएं पिछले चार दिनों से समय पर पहुंच जाती हैं फिर चाहे बारिश हो रही हो या शीतलहर चल रही हो इनको वहां आने से कोई नहीं रोक पाता। पूरे समय अनुशासन के साथ धरने पर बैठकर अपने इंकलाबी भाषण, नज़्म, गीत और नारों के साथ वह सरकार को यह संदेश देने से नहीं चूकतीं कि देश का विपक्ष भले ही तुमसे मात खा गया हो लेकिन हमारे हौसलों को तुम नहीं तोड़ सकते। नमाज़ का समय होने पर बड़े आराम से वहीं नमाज़ भी अदा हो जाती है। जगह कम होने के बावजूद कोई हड़बड़ या भगदड़ नहीं होती। बड़े आराम से एक दूसरे को जगह और सम्मान देते हुए यह महिलाएं इस अनिश्चितकालीन धरने को सफल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़तीं। और यह सब होता तब है जब पिछले महीने विरोध प्रदर्शन के दौरान कानपुर में तीन व्यक्तियों की मौत हो गई थी। पुलिस ने सैकड़ों लोगों को उपद्रवी बताकर उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कर दी थी। कुछ लोगों का मानना है कि यह चमनगंज दूसरा शाहीन बाग बन गया है और यह अभी शुरुआत है जिसके बाद यूपी के और शहरों में भी यही नज़ारा देखने को मिलेगा।कल धरने के दौरान किसी ने कहा था कि ‘अच्छा हुआ गृहमंत्री अमित शाह यह नागरिकता संशोधन कानून ले आए इससे सोयी हुई कौम को जागने का मौका मिल गया।‘ लगातार चार दिनों से चल रहे इस धरने में निरंतर बढ़ती लोगों की संख्या देखते हुए यह बात सच साबित होती दिखाई दे रही है।