गांधी जी के "खेड़ा आंदोलन" की याद दिलाता कानपुर का मो. अली पार्क,धरने का छठवाँ दिन


मो.शोएब/शावेज़ आलम
कानपुर । सीएए,एनआरसी,एनपीआर के विरोध की गूंज पूरी दुनिया मे गूंज रही है । हर धर्म का मानने वाला इस काले कानून का विरोध दर्ज करा रहा है । इस विरोध की गूंज अपने शहर में भी गूंज रही है । जिस की शुरूआत बीते 20,21 दिसम्बर को हुई । जिस में 3 नवजवानों की मौत कुछ आला अधिकार एव सिपाही घायल हुए तथा सरकारी,निजी सम्पत्तियों का नुकसान भी हुआ । उस उग्र आंदोलन के बाद शहर के अमनपसंद,बुद्धजीवियों ने गांधी जी की तर्ज़ पर अहिंसा, और शांति के साथ इस काले कानून का विरोध करने का निर्णय लिया । जिस की शुरूआत बीते 6 तारीख  को सविधान बचाओ समिति ने कैंडिल मार्च का आयोजन किया जो मो. अली पार्क से शुरू हो कर बेकनगंज रहमानी मार्किट पर शांति के साथ खत्म हुआ इस कैंडिल मार्च में हज़ारों लोगों ने शिरकत किया । जिस में महिलाओं का भी जबरदस्त योगदान रहा । इस कार्यक्रम के बाद ही कार्यक्रम के आयोजक मो सुलेमान व कुलदीप सक्सेना आदि लोगो ने मो. अली पार्क में 4 घण्टे का अनिश्चित कालीन धरने के आह्वान किया । जिस के बाद से लगातार 4 घंटे धरना चल रहा है जिस का आज छठवाँ दिन है । मो अली पार्क के मैन गेट से जैसे ही एंट्री करते है । दोनों तरफ लम्बा तिरंगा लहराता हुआ दिखता है । उस के आगे बढ़ते ही महिलाओं का हजूम दिखाई देता है जिन के चहरे में इस काले कानून का ख़ौफ़ तो है तो वही इन की आखों में इस काले कानून के लड़ने का हौसला भी वहीं इस धरने में महिलाओ, नवजवानों, और बुद्धजीवियों द्वारा अपना विचार रखना,आज़ादी के गीत गाना, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की नज़्में पढ़ना, उस के बीच,बीच मे  इन्कलाब ज़िन्दबाद, आवाज़ दो हम एक हैं" एनआरसी वापस लो जैसे जोशिले नारे की सदा फिज़ाओ में गूंज रही है । सर्द मौसम में भी इन के हौसले से यहां के माहौल को गर्म कर रहा  है ।



इस आंदोलन को देख कर गांधी जी द्वारा चलाया गया खेड़ा आंदोलन  जो गुजरात के खेड़ा जिले में किसानों का अंग्रेज सरकार की कर-वसूली के विरुद्ध 1918 में हुए आन्दोलन की याद दिलाता है । जिस में बाढ़ और अकाल पड़ने के कारण काफी प्रभावित हुआ जिसके परिणामस्वरूप तैयार हो चुकी फसलें नष्ट हो गईं। किसानों ने अंग्रेज सरकार से करों के भुगतान में छूट देने का अनुरोध किया लेकिन अंग्रेज अधिकारियों ने इनकार कर दिया। गांधी जी और वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में, किसानों ने अंग्रेज सरकार के खिलाफ एक क्रूसयुद्ध की शुरुआत की और करों का भुगतान न करने का वचन लिया। इसके परिणामस्वरूप, अंग्रेज सरकार ने किसानों को उनकी भूमि जब्त करने की धमकी दी लेकिन किसान अपनी बात पर अडिग रहे। पांच महीने तक लगातार चलने वाले इस संघर्ष के बाद, मई 1918 में अंग्रेज सरकार ने, जब तक कि जल-प्रलय समाप्त नहीं हो गया, गरीब किसानों से कर की वसूली बंद कर दी और किसानों की जब्त की गई संपत्ति को भी वापस कर दिया था ।मो. अली पार्क में इस आंदोलन बैठे सभी लोग इसी उम्मीद से हैं कि जिस तरह  अंग्रेज़ो द्वार गरीब किसानों से कर वसूली बंद की गई उसी तरह ये सरकार भी ये कानून वापिस ले ।