हम ख़ून की क़िस्तें तो कई दे चुके लेकिन  ऐ ख़ाक-ए-वतन क़र्ज़ अदा क्यूँ नहीं होता


कानपुर । शायर असरार-उल-हक़ मजाज़ का ये  शेर
"तिरे माथे पे ये आँचल बहुत ही ख़ूब है लेकिन 
तू इस आँचल से इक परचम बना लेती तो अच्छा था"
 आज हक़ीक़त होता हुआ नजर आ रहा है । सीएए, एनआरसी के खिलाफ जिस तरह से हर वर्ग की औरतों ने शांति पूर्वक धरना देने शुरू किया है । एक तरह से सीएए, एनआरसी के विरूद्ध धरना प्रदर्शन कर के अपने आँचल को ही परचम बनाया हुआ है । इस कानून के विरोध प्रदर्शन में अन्य वर्ग की महिलाओं के साथ मुस्लिम महिलाएं भी घरों से निकल कर आई हैं । जहां इस्लाम धर्म मे औरतों का पर्दे का सख्ती से पालन करना व घर से न निकलना की पाबंदी है ।लेकिन इस्लाम  जुल्म के खिलाफ लड़ने के लिए छूट भी देता है । इस्लाम को मानने वाले इस कानून को अपने लिए जुल्म  ही मानते हैं । इस बात का उदाहरण है जहां इस कानून के विरोध में हर शहर में शाहीन बाग बनते जा रहे हैं । जामिया की छत्राओं द्वारा शुरुआती इस कानून के विरोध फूंकी गई जान का ही नतीजा है कि आज मुस्लिम पर्दानशी औरते हिजाब के साथ इस कानून के विरूद्ध धरने में बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं । चाहे वो दिल्ली का शाहिन बाग हो या लखनऊ का घण्टा घर या अन्य शहर का धरना हो । इस कानून के विरोध में अपने शहर के मो.अली पार्क में भी पिछले 12 दिनों से अनिश्चित कालीन 4घण्टे का धरना चल रहा पर हैं ।


धरने में अब इतनी भीड़ उमड़ने लगी है कि जगह कम पड़ रही है । इस धरने में जहां राष्ट्रगान गाया जाता है तो वहीं हिन्दोस्तान ज़िंदाबाद के नारे लगते हैं । राष्ट्र ध्वज लहराता हुआ दिखता हैं राबिया जैसी पर्दानशीं ये शेर पढ़ती है
"उस देश मे लगता है अदालत नही होती जिस देश मे इन्सान की हिफाज़त नही होती हर शख्स बाँध के निकलेगा कफन हक़ के लिए लड़ना कोई बगावत नही होती"
 तो दूसरी फ़ैज़ की "लाज़िम है हम भी देखें गए" नज़्म पढ़ती है । ये पर्दानशी सर पर NO NRC,NO CAA  की पट्टी बांधे हैं । नमाज़ के वक़्त नमाज़ पढ़ रही हैं  तो भीम आर्मी की ममता अपना समर्थन दे कर हिन्दू,मुस्लिम,सिख,ईसाई आपस मे है सब भाई, भाई कर जोश भर रही हैं । वही क्षेत्रीय विधायक के पहुचंने पर ये महिलाएं दहाड़ के उन से पूछ रही हैं कि माँ बहने सड़कों पर उतरीं हैं । अब आप जागे हैं फिर भी आप के आने का शुक्रया । यहाँ आई हुई सभी महिलाओं के चहरे से सरकार के खिलाफ गुस्सा झलक रहा है तो आखों में एक सवाल भी है ।
हम ख़ून की क़िस्तें तो कई दे चुके लेकिन 
ऐ ख़ाक-ए-वतन क़र्ज़ अदा क्यूँ नहीं होता