"तानाशाह"  के रूप में डाकू ददुआ की वापसी

 


 रियाज़ रज़वी


कानपुर । यूपी-एमपी के पाठा में करीब तीन दशक तक राज करने वाले डकैत ददुआ पर बनाई गई है फिल्म, लीड रोल निभाने वाले एक्टर ने बताए डकैत की जिंदगी से जुड़े रहस्य।


कानपुर। पाठा के जंगलों के करीब 52 गांवों में जब भी कोई बच्चा रोता था उसकी मां कहती थी कि बेटा चुप हो जा नही तो डाकू ददुआ आ जाएगा। तीन दशक तक यूपी और एमपी के जंगल में बैठकर वह सरकार चलाता था। 2007 में मायावती सरकार के कार्यकाल के दौरान डाकू पुलिस एनाकाउंटर में मारा गया। पर चंबल घाटी यानी पाठा में बागी के बूटों की गूंज सुनाई दे रही है। क्योंकि रॉबिनहुड छवि वाले ददुआ के जिंदगी पर आधारित फिल्म तानाशाह बनकर तैयार है और इसका ट्रेलर भी लांच हो चुका है। फिल्म में डकैत की किरदार निभाने वाले एक्टर से जब बात की तो उन्होंने कई खुलासे किए।


दिलीप आर्या ने निभाया ददुआ का रोल 
घाटमपुर कोतवाली के साढ क्षेत्र निवासी अमौली के दिलीप आर्या ने डकैत ददुआ का किरदार निभाया है। रविवार को वह फिल्म के प्रोडक्शन असिस्टेंट मुकेश भदौरिया व डाॅयरेक्टर रिजवान के साथ मीडियो से रूबरू हुए। प्रोडक्शन असिस्टेंट मुकेश भदौरिया व डाॅयरेक्टर रिजवान ने बताया कि इसी सप्ताह 7 फरवरी को फिल्म रिलीज हो रही है। जिसमें ददुआ के जीवन पर यह यह सम्पूर्ण फिल्म बनी है। ,दिलीप आर्य ने बताया कि ददुआ का किरदार निभाने से पहले हम उनके पैतृक गांव गए। उनके परिजनों और ग्रामीणों से मिले। उनकी जिंदगी के राज जाने और फिर ददुआ का रोल निभाने के लिए पाठा के जंगलों में कई राते गुजारीं।


5 साल में बनकर तैयार हुई फिल्म 
दिलीप आर्या ने बताया कि फिल्म की शूटिंग चित्रकूट के देवकली व पाठा के घने जंगलों में हुई है। बताते हैं डकैतों के रहन-सहन के तरीके समझे। बीहड़ के दुर्गम रास्तों पर घूमना रोमांच भरा रहा। दुर्गम पहाडियों व जंगल शूटिंग में काफी कठिनाइयां आईं। आर्या ने बताया कि इस फिल्म को बनाने में करीब 5 वर्ष का समय और करीब चार करोड़ रुपया लगा है। फिल्म को 3 अवार्ड भी मिल चुके है। आर्या ने बताया कि जब हम ददुआ के गांव पहुंचे तो उन्हें लोग आज भी काका के नाम से पुकारते हैं। ग्रामीणों के बीच ददुआ की इमेज एक राॅबिनहुड की तरह हैं और लोग उसे बहुत प्यार और सम्मान करते हैं।


एक डाॅयलाॅग ने मचा दी खलबली 
आर्या ने बताया कि मैंने अमौली फ्रेंड्स क्लब यू-ट्यूब चैनल पर तानाशाह का ट्रेलर अलपोड किया था। जिसके बाद देखने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। कुछ दिन में हजारों लोग ट्रेलर देख चुके हैं। बताते हैं दो मिनट के ट्रेलर की शुरुआत जमींदार के कौन हो बे तुम, क्या चाहते हो डायलॉग से होती है। जवाब में दस्यु ददुआ अपनी बहन और पिता की मौत का बदला लेने की बात कहता है। इस डाॅयलाॅग के हजारों लोगों ने देखा और जमकर तारीफ की। कहते हैं कि फिल्म में हमनें ददुआ की रॉबिनहुड छवि को भी उभारा है। क्योंकि आज भी बांदा और चित्रकूट के गांवों के ग्रामीण ददुआ को पूजते हैं।


ददुआ का यह रहा करियर
ददुआ का जन्म चित्रकूट जिले के देवकली गांव में 1949 में हुआ था। ददुआ पर पहला केस 1975 में (थाना रैपुरा) में मर्डर का दर्ज हुआ था। 1975 से लेकर 2007 तक इसके ऊपर 235 से ज्यादा लूट, मर्डर, नरसंहार, किडनैपिंग और वसूली के मामले दर्ज थे। 70 के दशक से अपराध की दुनिया में एक्टिव ददुआ बेहद क्रूर था। जनार्दन सिंह के सरेंडर के बाद 1982 में उसने अलग गैंग बनाया। आरोप है कि गैंग के एक बदमाश की गिरफ्तारी के बाद ददुआ ने रामू का पुरवा गांव में 19 जुलाई 1986 को साथियों के साथ 9 लोगों को गोली मार दी थी। 1992 में उसने मड़ैयन गांव में 3 लोगों को मारने के बाद गांव को आग लगा दी थी। उसने 24 से ज्यादा पुलिस मुखबिरों को मार डाला था।


ददुआ का राजनीति में था दखल
ददुआ ने कुर्मी (पटेल) जातिवाद का कार्ड खेलकर इलाके में पैठ बनाई। ’1982 से लेकर 2007 तक ददुआ ने हर चुनाव में फरमान जारी किए। यूपी-एमपी की 15 विधानसभा और लोकसभा की 10 सीटों पर उसके इशारे पर ही वोट डलते थे। ददुआ का भाई बालकुमार पटेल (पूर्व सांसद) बेटा वीरसिंह पटेल (पूर्व एमएलए, चित्रकूट) बहू ममता पटेल ( पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष, कर्वी) बेटी चिरौंजी देवी (पूर्व प्रमुख, धाता ब्लॉक, फतेहपुर) भतीजा रामसिंह पटेल (पूर्व एमएलए, प्रतापगढ़) रह चुके है। पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह ने तेज तर्रार आईपीएस अमिताभ यश को ददुआ को मारने का जिम्मा सौंपा था। करीब तीन महीने जंगलों की खाक छानने के बाद 22 जुलाई 2008 में 22 एसटीएफ के जवानों ने मिलकर ददुआ को मार गिराया था।